नागदा नाम कैसे पड़ा?
नागदा' नाम कैसे पड़ा?
✍️ जावेद शाह खजराना (लेखक)
दोस्तों इंदौर से करीब 115 किलोमीटर दूर एक नगर आबाद है। जिसका नाम #नागदा है।
आज मैं आपको ये बताऊंगा कि इस जगह का नाम नागदा क्यों और कैसे पड़ा? और नागदा लफ्ज़ का मतलब क्या होता है?
नागदा का सही उच्चारण नागदा नहीं बल्कि नाग+दाह (नागदाह) है , नागदाह यानि नागों को जलाना!
#नागदाह का बिगड़ा नाम नागदा हुआ।
अब बात करते है नागदाह नाम कैसे पड़ा?
चूंकि इस जगह पर सांपों को जलाया गया था। इसलिए इस जगह का नाम नागदाह यानि नागदा पड़ा।
अब बताता हूँ कि यहां सांपों को क्यों जलाया गया था।
दोस्तों हम #हिंदुस्तान में रहते है । यहां की धरती पर हजरत #आदम अलैहि0 के उतरने से लेकर अब तक बहुत-सी यादगार और अजीबोगरीब घटनाएं घटी हैं। इन्हीं घटनाओं में से एक अनोखी घटना भगवत पुराण में भी लिखी है ।
महाभारत के #अर्जुन का नाम तो आप सभी ने सुना होगा। इन्हीं अर्जुन के बेटे थे अभिमन्यू।
जब #महाभारत की जंग चल रही थी। तब #गुरुद्रोणाचार्य के बेटे अश्वस्थामा ने अर्जुन से अपने बाप गुरुद्रोणाचार्य की हत्या का बदला लेने के लिए अर्जुन की बहू उत्तरा (अभिमन्यु की बीवी) के गर्भ पर #ब्रह्मास्त्र चला दिया ताकि अर्जुन का वंश खत्म हो जाए।
ब्रह्मात्र चलाने से #उत्तरा का गर्भ गिर जाता है।
लेकिन #श्रीकृष्ण अपनी शक्ती से उत्तरा के बेटे को बचा लेते है , जिसका नाम परीक्षित रखा जाता है।
परीक्षित के राजा बनते ही #द्वापर युग खत्म हो जाता है और #कलयुग की शुरुआत होती है।
एक दिन राजा #परीक्षित जंगल में शिकार कर रहे थे ।प्यास लगने पर वो ऋषि शमीक के आश्रम में पानी मांगने जाते है। उस वक्त ऋषि #शमीक आंखें मूंदे तपस्या में मशरूफ़ रहते है लिहाजा कोई जवाब नहीं दे पाते। पानी नहीं मिलने पर गुस्से में तमतमाए राजा परीक्षित ऋषि शमीक के गले में एक मरा हुआ सांप डालकर चले जाते है।
ऋषि शमीक के बेटे #श्रृंगी_ऋषि को जब इस अपमान का पता चलता है तो वो गुस्से में आकर राजा परीक्षित को बद्दुआ दे देते है कि मेरे बाप के गले में सांप डालने वाले राजा परीक्षित तुझे 7वे दिन #तक्षक नामक सांप काट लेगा।
फ़क़ीरों-साधुओं की बद्दुआ कभी खाली नहीं जाती।
ऋषि की बद्दुआ का असर होता है।
अर्जुन के पोते परीक्षित को 7वे दिन तक्षक नामी सांप डंस लेता है । जिससे उसकी मौत हो जाती है।
परीक्षित के बेटे जन्मेजय को जब यह पता चलता है कि मेरे पिता की मौत साँप के काटने से हुई है ।
तब वो दुनिया के सभी साँपों को मारने के लिए हिंदुस्तान भर में गिनी-चुनी जगहों पर नागदाह यज्ञ करवाता है। ताकि इन यज्ञों में सांपों को डालकर भस्म कर सके।
नागदाह यज्ञों में नागों को पटक दिया जाता था। एक ख़ास मंत्र द्वारा नाग खुद यज्ञ के पास पहुंच जाते थे। उन्हें पकड़-पकड़कर आग के हवाले कर दिया जाता।
जहाँ-जहाँ ये नागदाह यज्ञ हुआ उस जगह का नाम नागदा पड़ गया। इसलिए आपको देशभर में नागदाह नामक स्थान मिल जाएंगे।
किसी-किसी स्थान पर छोटे-बड़े नागदाह यज्ञ भी हुए इसलिए आपको छोटा नागदा और बड़ा नागदा भी देखने को मिल जाएगा।
#उज्जैन के पास जो नागदा है वहाँ सर्पदाह का एक बड़ा यज्ञ आयोजित किया गया क्यूंकि उज्जैन के महाकाल वन में सैकड़ों नागों का वास था।
उज्जैन के पास 2 यज्ञ हुए।
उज्जैन वाले नागदा में एक #टेकरी है जिसे लोग नागदाह टेकरी कहते है। जनश्रुति है कि नागों को जलाने की वजह से यहां राख का ढ़ेर लग गया और उस जगह पर धीरे-धीरे मिट्टी और धूल से एक टेकरी बन गई जो आज भी है।
सन 1955 यानि 61 साल पहले पुरातत्व विभाग के पुरातत्वविद् डॉ. वाकणकर ने अपनी टीम के साथ टेकरी का मुआयना कर यहां खुदाई की थी। टेकरी से कई प्राचीन वस्तुएं मिली थी। जो #म्यूजियम में रखी है। मुआयने के दौरान यह भी तस्दीक हुई थी कि यज्ञ में दी गई सांपों की आहुति की राख से ही नागदाह टेकरी अस्तित्व में आई थी।
यहां के यज्ञ की आग से कर्कोटक नामक सर्प ने अपनी जान बचाने के लिए उज्जैन में महाकाल राजा की शरण ले ली थी । जिसके चलते वह बच गया था। गौरतलब है कि उज्जैन के #महाकाल मंदिर के शिखर पर नागदेव का मंदिर बना है।
आपको जानकर ताज्जुब होगा कि उज्जैन के महाकाल मंदिर में ऊपर के शिखर पर आज भी सांपों का मंदिर बना है । जो साल में सिर्फ नाग पंचमी के दिन ही खुलता है।
जानकारी देने वालाI
जावेद शाह खजराना
9340949476🤳

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