2 जून की रोटी

 2 जून की रोटी...👍

✍ जावेद शाह खजराना (लेखक)


दोस्तों आज 2 जून है।

कोरोना महामारी औऱ लॉकडाउन जैसी समस्या से हम सभी जूझ रहे है। महंगाई रूपी डायन ने एक भी घर को नही छोड़ा बल्कि अपने असर से सभी रसोईघरों के बजट को तेल से लेकर आटे तक के भाव ने बिगाड़ दिया है।

पिछले लॉकडाउन से लेकर अब तक अकेले सोयाबीन तेल का भाव ढाई गुना बढ़ गया है। इसकी देखदेखी बाकी तेल भी नखरे दिखाने लगे।





 महंगाई रूपी इस डायन ने अमीर-गरीब सबको हिला कर रख दिया है।


ऐसे में ये कहावत सही साबित नजर आने लगी है कि 2 जून की रोटी कमाना भी महंगा पड़ रहा है।


दोस्तों 2 जून यानि 2 वक्त

 हम दो अप्रेल या दो मई की रोटी क्यों नहीं कहते ? क्योंकि दो जून की रोटी का मतलब कोई महीना नहीं, बल्कि दो समय (सुबह-शाम) का खाना होता है। 


यहाँ जून से मुराद जून का महीना नहीं है।

बल्कि अवधि भाषा में वक्त या समय को जून कहते है।

अवधी भाषा से जन्मा है दो जून की रोटी ।

इससे ही यह कहावत वजूद में आई।

आम शब्दों में बतौर कहावत इसके मायने कड़ी मेहनत के बाद भी लोगों को दो समय का खाना नसीब नहीं होना, होता है।

#javedshahkhajrana

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