बुढ़िया और सोहन हलवा
*कंजूस बुढ़िया और सोहन हलवा*😊
✍️ *जावेद शाह खजराना (लेखक)*
*ख़्वाजा जी की दरग़ाह के ठीक सामने बने बेगमी दालान के सहन में बैठा मुंहबोली ख़ाला से तारागढ़ चलने की जिद कर रहा था। इतने में कंजूस बुढ़िया ने भांजी मार दी।😏*
*बूढ़ापे और थकान का बहाना करके ख़ाला को भी भड़का दिया , सो उन्होंने भी पहाड़ चढ़ने से इनकार कर दिया।😭*
*बुढ़िया मुझसे बोली- 'मुझे सोहन हलवा तो दिला लाओ।'*
*मुझे कंजूस अम्मा की रेल वाली 2 रुपए की सेंव की पुड़िया याद थी। इसलिए ख़ाला से कहा - 'रहने दो ख़ाला ! ये अम्मा लेगी-वेगी कुछ भी नहीं जबरन का थकायेगी ।' ☺️*
*'नहीं बेटा मुझे तबर्रुक लेना है । तू मुझे दिला ला तुझे भाव-ताव करना भी आता है।'*
*अम्मा ने मेरी तारीफ़ करके ताव पर चढ़ा दिया।😁*
*सोहन हलवा खरीदना कौन-सी बड़ी बात है🤔*
*इसलिए अम्मा को लेकर मैं निज़ामी गेट के सामने दरगाह बाजार पहुंचा।*
*अज़मेर में सोहन हलवा खरीदना या उसका भाव पूछना बहुत रोचक रहता है । खरीदार को सिर्फ भाव पूछने भर की देर रहती है । दुकानदार फौरन सरोते से सोहन हलवा काटकर टुकड़ा चखने के लिए आगे बढ़ा देता है।* 😉
*स्वाद और भाव पसंद आए तो ठीक वरना अगली दुकान पर भी हलवा चखने का आनंद उठाओ।🤑*
*अजमेर जाने वाले बहुत-से जायरीन तो सिर्फ हलवा चखने के लिए दूकान-दुकान भटकते फिरते हैं।😁*
*अजमेर में 90 के दशक में भी सोहन हलवे की सैकड़ों दुकानें थी। 👍*
*आज भी दरगाह बाजार से लेकर रेलवे स्टेशन तक सोहन हलवे से सजी बेशुमार दुकानें आसानी से मिल जाती है।*
*ढाई दिन के झोपड़े से लेकर तारागढ़ के रास्ते में भी हलवे की बहार ही बहार है।*👌
*सो बुढ़िया मुझे लेकर हर दुकान जाने लगी। 🤑*
*दुकानदार सरोते से टुकड़ा तोड़कर आगे बढ़ा देता।*
*बेशर्म बुढ़िया फौरन चटकर जाती। थोड़ा मुझे भी चखाती फिर भाव सुनकर आगे बढ़ जाती।*👍
*सैकड़ों दुकानों से सोहन हलवे के सेम्पल खाकर मुझे तो पक्का यकीन हो गया कि अब उसे लंच की जरूरत नहीं पड़ने वाली। उसने सोहन हलवे से पेट जो भर लिया था |डकार तक नहीं मारी।*💐
*निज़ामी गेट से हलवा चखते -चखते वो मुझे अढ़ाई दिन के झोपड़े से आगे बने बाजार तक ले गई।*
*हद हो गई । उसकी चटोरी जुबान को कोई भी स्वाद पसंद नहीं आया। तारागढ़ चढ़ने में उन्हें ज़ोर आ रहा था लेकिन बाज़ार घूमने में उसे कोफ़्त नहीं हुई।😏*
*मैंने चिढ़कर कहा- 'हद हो गई अम्मा!*
*सैकड़ों दुकानों का हलवा चट कर लिया फिर भी आपको सोहन हलवा पसंद नहीं आया। जबकि मेरे पांवों में सूजन पड़ गई।'*
*बेटा बस एक दो जगह और देख लेते है फिर पक्के में खरीद लूंगी।*😊
*उस वक्त (1997) सोहन हलवा 20 रुपए प्रतिकिलो से लेकर 200 रुपए तक था। मैंने समझाया अम्मा 20 रुपए के चक्कर मे क्यों पाँव दुखा रही हो? चलते-चलते अब तो पैरों ने भी जवाब दे दिया है।*
*अब तो ख़रीद लो यार।*
*लगभग सारी दुकानों का हलवा छानने के बाद आख़िर हम फिर वही पहुंचे , जहां से हलवे का भाव पूछना शुरू किया था। यानि निज़ामी गेट के सामने।*😊
*दुकानदार ने बुढ़िया और मुझे फौरन पहचान लिया।*
*बोला -'अम्मा कितना खरीदोगी?'*
*दुकानदार की तरह मैंने भी सोचा जब अम्मा इतना भाव-ताव पूछ रही है तो चार-पाँच किलो जरुर खरीदेगी।*☺️
*लेकिन हुआ इसका बिल्कुल उल्टा।*
*बुढ़िया ने सबसे सस्ते गुड़ के हलवे का भाव पूछा।*
*गुड़ का हलवा सबसे कठोर होता है। दांत टूट जाए फिर भी हलवा ना टूटे। किसी को फेंककर मार दो तो बंदे के सिर में गुमड़ा उठ जाए। हलवा भी बुढ़िया की तरह सख़्त था।* 😁😁😁
*बुढ़िया ने पहले तो दुकानदार से भाव को लेकर बहुत झिकझिक की। आखिर में 20 रुपए किलो में तोड़ करवाया।*😊
*दुकानदार ने पूछा - 'कितना तोल दूं?'*
*बुढ़िया का जवाब सुनकर मैं शर्म के मारे उल्टे पैर भागा।*
*सभी दुकानों से किलो भर हलवे का मंजन करने के बाद*
*कंजूस बुढ़िया ने सिर्फ पाव भर यानि 5 रुपए का सोहन हलवा खरीदा।* 😁😁
*पूछने पर बड़ी बेशर्मी से बोली*
*-अकेली जान हूँ बेटा! ज्यादा खरीदकर क्या करुंगी?*
*मैं इतनी अमीर भी नहीं कि बांटने के लिए खरीदूँ?😢*
*मेरे अकेले के लिए 250 ग्राम बहुत है।*
*बुढ़िया का जवाब सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया ।*
*फिर सिर पीटकर वापस दरगाह लौट गया।*
#javedshahkhajrana

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