ताजिया के मायने क्या है?

ताज़िया के मायने? ✍️ जावेद शाह खजराना (लेखक) ताज' से ताजिया लफ्ज़ बना। ताज जो सर के ऊपर पहना जाता है , ठीक उसी प्रकार गुम्बद भी मक़बरे का ताज ही होता है। इसलिए हजरत ईमाम हुसैन रजि0 के मक़बरे की डिजाइन (नकल/Model) को ताज़िया कहते है। वैसे ताजियत के मायने शोक भी होते है। ताजिया को शोक' मनाने का मकाम भी कहा जाता है। शिया समुदाय ताजिये के मायने 'शोक' (दुख) मनाता है। ताजिया यानि ईमाम हुसैन के मक़बरे की डिजाईन 👍 इस विषय पर लिखने से ज्यादातर लोग कतराते है। क्योंकि लोगों ने ताजिया लफ्ज़ को आस्था से जोड़ रखा है । इसलिए मैं विवादित बयान से बचूंगा सिर्फ मालूमाती पोस्ट लिख रहा हूँ। अंजाने में कोई गलती हो जाए तो प्लीज माफ कर देना। मुख्तसर में ताज़िया' हजरत इमाम हुसैन रजि0 के मक़बरे की डिजाइन है। लेकिन ये मक़बरे की डिजाईन भी असली नहीं है। क्योंकि लोग ताजिया अपने-अपने हिसाब से बना लेते है। जबकि हजरत इमाम हुसैन रजि0 के हकीकी मक़बरे के बारे में भी बहुत-सी गलत-फहमियां फैली है। यानि हजरत इमाम हुसैन के सर और धड़ पर बने बहुत-से मक़बरे दुनियाभर में मौजूद है।😢 असली मक़बरा कौन-सा है? कोई नहीं जानता । हद तो ये भी है कि हिंदुस्तान के हर शहर और कस्बे तक में हजारों कर्बला (इराक के शहर का नाम) बना रखी हैं। जबकि असली कर्बला तो सिर्फ ईराक में है। जबकि कर्बला में हुए शहीदों का हिंदुस्तान से कोई लेना-देना ही नहीं है। ईमाम हुसैन रजि0 की शहादत के बाद उनके ज़िस्म को मदफुन करने को लेकर भी बहुत-सी रिवायतें हैं। जैसे कोई कहता है उनका धड़ कर्बला में दफ़्न है , तो सर मदीना में । कोई कहता है कि उनका सर दमिश्क़ की जामा मस्जिद में दफ़्न है। इस मामले में बहुत ही ज्यादा कन्फ्यूजन फैला है , कन्फ़र्म कुछ भी नहीं। अगर आप कर्बला के मकबरे का इतिहास पढेंगे तो रोंगटे खड़े हो जाएंगे । क्योंकि हजरत इमाम हुसैन के कर्बला वाले मक़बरे को अब्बासी खलीफाओं द्वारा दर्जनों बार जमीदोंज किया जा चुका है। मक़बरे की असली जगह अल्लाह जाने कहाँ है? प्यारे दोस्तों हजरत इमाम हुसैन रजि0 की शहादत कर्बला के मैदान में हुई । आपका सर~ऐ~मुबारक यजीदी धड़ से अलग करके यजीद के पास कर्बला (ईराक) से दमिश्क (सीरिया) ले गए । क्योंकि यजीद दमिश्क़ में ही रहता था। कर्बला से दमिश्क़ की दूरी तक़रीबन 850 किलोमीटर है। यानी इंदौर से दिल्ली के बराबर। एक रिवायत के मुताबिक हजरत इमाम हुसैन रजि0 के सर~ऐ~मुबारक को दमिश्क़ की जामा मस्जिद में दफ़्न किया है । ये वही करिश्माई मस्जिद है जहाँ कयामत से पहले हजरत ईसा अलैहिस्सलाम इसकी एक मीनार पर उतरेंगे। इसी मस्जिद के सहन में हजरत याह्या अलैहिस्सलाम का सर भी दफ़्न है। यहाँ 2 शहीदों के सर दफ़्न है। दोस्तों कयामत की एक निशानी है , दमिश्क़ की जामा मस्जिद। दूसरी रिवायत के मुताबिक इमाम हुसैन के सर को मदीना में दफनाया गया। दमिश्क़ से मदीना भी 1200 किलोमीटर दूर है। क्या उस जमाने में इतने लंबे सफर तक किसी सर मुबारक को बिना दफ़्न किए रखना जरूरी था? वो भी नवासा ऐ रसूल के सर को। जबकि हजरत ईमाम हुसैन रजि0 का सारा परिवार सर के साथ दमिश्क़ में मौजूद था। इसलिए मुझे दमिश्क़ वाली रिवायत ज्यादा मजबूत नजर आती है। बहरहाल ताज़िया सिर्फ और सिर्फ हजरत इमाम हुसैन रजि0 के मकबरे की नकल है। वो नकल भी असली नहीं। क्योंकि हजरत इमाम हुसैन रजि0 के ढ़ेरों मक़बरे हैं। सबकी डिजाइन भी मुख्तलिफ है। इमामबाड़ों में रखे ताजिए भी ओरिजनल मक़बरे की डिजाइन से बिल्कुल मेल नहीं खाते। बहुतेरे लोग तो ताज़िया में बुराख भी सजा देते है । जबकि बुराख का क़िस्सा प्यारे नबी की मैराज से जुड़ा हुआ है। इसलिए ये कहना और मानना भी गलत है कि ताज़िया हजरत इमाम हुसैन रजि0 के ओरिजनल मक़बरे की नकल है।👍 चूंकि ताज़िया ईरान से आया। इसलिए ये फारसी लफ्ज़ है अरबी नहीं। बाँस की किमचियों, रंगीन कागज़ों (ताव) से लपेटकर मकबरे के आकार को बनाया जाता है। इन मकबरों (ताजियों) में इमाम हुसैन रजि0 की कब्र वगैरह भी नहीं होती , मुहर्रम में शिया मुसलमान इसके सामने मातम मनाते हुए , इसे दफ़न करते हैं। शिया मुसलमानों की देखा-देखी सुन्नी मुसलमान भी ताजियादारी करने लग गए। हमारे देश में ज्यादातर मुगल शासक शिया थे। 1947 देश की आजादी तक बहुत-से इस्लामी हुक्मरान (नवाब) शिया ही थे। इसलिए ताजियादारी चलती रही। शियाओं ने ही ताजियादारी को बहुत बढ़ावा दिया। इन शिया मुगल बादशाहों ने शिया नवाबों को लखनऊ, भोपाल , जावरा जैसी रियासत दी। इन शिया शहरों में शिया हुक्मरानों ने ताजियादारी को खूब बढ़ावा दिया। भोली-भाली मुस्लिम जनता इन डिजाईन को हजरत इमाम हुसैन समझने लगी।🤤 जावरा नवाब ने तो हद कर दी। सभी एहले बैत (हजरत बीवी फातमा से लेकर हजरत इमाम हुसैन ) की कब्रें जावरा की हुसैन टेकरी में बना दी। जबकि प्यारे नबी के खानदान का कोई भी शख़्स कर्बला की घटना तक हिंदुस्तान में नहीं आया था। ऐसा भी मशहूर है कि शिया बादशाह तैमूर कुछ जातियों का नाश करके जब करबला गया था । तब वो वहाँ से इमाम हुसैन के मकबरे के निशान लाया था। जिसे वह अपनी सेना के आगे-आगे लेकर चलता था । तभी से ताज़िया निकालने का चलन चल पड़ा । दूसरी कहानी ये है कि सन 1398 ईसवी में जब तैमूर दिल्ली आया। तब मोहर्रम का महीना आ पहुँचा। हिन्द का डरपोक बादशाह मेहमूद शाह तुग़लक़ दिल्ली से भागकर इंदौर के पास धार किले में छिप गया। आदतन तैमूर को कर्बला जाने की सूझी। उसके होशियार वजीरों ने कहा कि - हुजूर बड़ी मुश्किलों और किस्मत से दिल्ली जीती है । यहाँ बहुत गड़बड़ है। यहाँ के झंझटो को निपटाए बिना इतनी दूर (कर्बला) जाने पर हालात बिगड़ सकते है। हिन्द का भगोड़ा बादशाह सेना की जुगाड़ करके फिर कब्जा कर लेगा। लिहाजा हम आपके लिए इमाम हुसैन के रोजे की नकल यही बनवा देते है। आप यही जियारत करके तसल्ली कर लेना।' बेचारा लँगड़ा तैमूर दिमाग से भी पैदल था। उसे वजीरों का आईडिया पसंद आ गया। बांस से बनी इमाम हुसैन के मकबरे की डिजाईन को बड़ी धुमधाम से दिल्ली में घुमाया-फिराया गया। बाद में तैमूर ताज़िया यही छोड़कर चला गया। उसके बाद उसके बैठाए कठपुतली शिया राजा-नवाबों ने हिन्द के मुसलमानों के ईमान से खिलवाड़ करना शुरू कर दी साथ तैमूर को खुश करने के लिए ताज़िया बनाना शुरू कर दिया। ये तो वही बात हो गई। जैसे कोई अपने घर के सामने मैदान में काबा शरीफ की डिजाईन बनाकर उसका तवाफ़ करके खुद को हाजी मान ले। उस डिजाइन को माज़ अल्लाह नादान मुसलमान मक्का बोलने लग जाए। दोस्तों इस्लामी इतिहास में ऐसी खुराफात हो चुकी है। प्यारे नबी की पैदाइश से 55 दिन पहले की बात है। इसका जिक्र क़ुरआन में भी है। सूरे फिल पढ़िए। जब अबराहा नामक जालिम बादशाह ने नकली काबा बनाकर असली काबे को ढहाने की कोशिश की। यानि नकली काबा को असली बनाने की सोची। तब अल्लाह ने उसे मजा चखा दिया। काबा तो अल्लाह का घर है । अल्लाह ने फर्जीवाड़ा नहीं होने दिया । अल्लाह ने अपने घर की हिफाजत खुद की। अबराहा के हाथियों को अबाबीलों से नेस्तनाबुद करवा दिया। यहां मामला हजरत ईमाम हुसैन के मक़बरे को लेकर है। ये सभी मक़बरे कन्फ़र्म नहीं है कि असली है । वर्ना तैमूर का हश्र भी अबराहा जैसा होता। ताज़िया को लेकर एक कहावत मशहूर है- ताज़िए ठंडे होना' यानि अरमान ठंडे होना । अल्लाह हमारे और आपके ईमान की हिफाजत करें। सिराते मुस्तकीम पर चलाएं। खुराफ़ातियों के ताजिए ठंडे हो जाए। आमीन #fameofkhajrana #javedshahkhajrana

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