अबु हुरैरा रजि0 की 21 बरकती खजूरें

*अबु हुरैरा रजि0 की 21 खजूरें जिसमें रसूलअल्लाह ने ऐसी बरकत डाली जो कभी ख़त्म नही होती थी* ✍️ *जावेद शाह खजराना (लेखक)* दोस्तों ये बात सच्ची और इबरत भरी है। अल्लाह ने अपने नबी पर क़ुरआन उतारा। हजरत अबु हुरैरा रजि0 को क़ुरआन याद था। रसूलअल्लाह ने जो नसीहतों भरी बातें बताई वो लिख ली गई। जिसे हदीस कहते है। सबसे ज्यादा हदीस हजरत अबु हुरैरा रजि0 को ही याद थी । उन्होंने तकरीबन 5374 हदीसें लिखी हैं। ये एक अज़ीम रिकार्ड है। जो किसी सहाबी के नाम दर्ज नहीं हुआ। ये सारा इल्म उन्हें प्यारे आका की सोहबत से हासिल हुआ। अबु हुरैरा हमेशा प्यारे नबी की महफिलों में बैठा करते उनकी बातों को गौर से सुनते। याद कर लेते। प्यारे नबी की सोहबत में उन्होंने समझो दुनिया से नाता तोड़ रखा था। उनके सिर्फ 2 ही काम थे इबादत करना और बाकी वक्त रसूलअल्लाह की चौखट पर गुजारना। जो भी रूखा-सूखा रसूलअल्लाह के दर से मिलता खा लिया करते और बचकुचा अपनी बूढ़ी माँ के लिए भी ले जाते। कभी-कभार ऐसे भी हालात पेश आते कि आपको खाने की कोई चीज मयस्सर नहीं होती। कई -कई दिन फाँकों में गुज़ार देते लेकिन मुँह से उफ़्फ़ तक नहीं करते। उनकी बूढ़ी वालिदा जरूर नाराज होकर अबु हुरैरा को ताने मार देती लेकिन अबु हुरैरा अपनी माँ की नाराजगी को दिल से नहीं लगाते फिर चले आते अपनी नबी की बारगाह में। जुबान पर जिक्रे इलाही और दिल में रसूलअल्लाह की मोहब्बत। बस यही काम था उनका। एक मर्तबा की बात है। रसूलअल्लाह की महफ़िल सजी हुई थी। तीन-चार दिन से भूखे अबु हुरैरा रजि0 भूख की शिद्दत से निढ़ाल कमजोरी की हालत में लड़खड़ाते हुए आते है। उनकी आंखें भरी हुई थी। खामोशी से आख़िरी कोने में बैठ जाते है। सुबक-सुबक कर रोते रहते है। कभी आंखें पोछते है कभी चेहरा ढंकते है। प्यारे आका की आदत थी वो अबु हुरैरा को देखकर मोहब्बत से मुस्कुरा दिया करते थे। लेकिन आज ये क्या बात है। जिसकी आंखों की तारीफ रसूलअल्लाह करते थकते नहीं थे उन्हें हुरैरा यानि बिल्ली जैसी आंखों वाला पुकारते थे। अपने लाडले सहाबी हुरैरा की आँखें नम और दिल बुझा-बुझा सा क्यों है ?😢 महफ़िल के बाद रसूलअल्लाह अबु हुरैरा रजि0 को तलब करते है। पूछते है क्या बात है? अबु हुरैरा इस तरीके से रोना कि देखने वालों का कलेजा फट पड़े । तुझे क्या तकलीफ है जिसने तुझे रुला दिया? अल्लाह ने तेरे सीने में क़ुरआन उतारा तुझे हदीसें मुंह जुबानी याद है ....अल्लाह ने तुझे मेरी चौखट की सरफराजी से नवाज़ा। 4 साल से तू मेरे साथ है। क्या माजरा है तू क्यों रोता है और इस तरह क्यों लड़खड़ाते हुए आजकल आ रहा है। या अल्लाह के रसूल 3 दिन हो गए मुझे खाने को कुछ मयस्सर नहीं हुआ। कुछ और दिन भी नहीं मिलेगा तो चलेगा लेकिन मेरे आका मेरी बूढ़ी मां भी बहुत भूखी है। भूख से वो घर में तड़प रही है। मुझसे उसकी भूख और तड़प देखी नहीं जाती। अल्लाह के रसूल मैं आपका सहाबी हूँ किसी के आगे सवाल भी नहीं कर सकता ऐसे हालात में ऐ अल्लाह के रसूल में रोउ नहीं तो क्या करूँ?अब तो भूख से चला भी नहीं जा रहा इसलिए लड़खड़ा रहा हूँ मेरे आका। रसूल अल्लाह ने देखा कि अबु हुरैरा के एक हाथ में थैली है। आका ने पूछा हुरैरा तेरे हाथ में जो थैली है वो तो भरी-भरी लग रही है और तू कह रहा हैं कि खाने को कुछ भी नहीं हैं । थैली पलटकर दिखा इसमें क्या है? हुरैरा ने जैसे ही थैली पलटी उसमें से खजूरें गिरने लगी। 21 खजूरें जो एकदम बासी , सड़ी-गली और सुखी थी। अल्लाह के रसूल की आंखों में आंसू आ गए उन्होंने पूछा 'हुरैरा ये सारी खजूरें तो बेकार है खाने के भी क़ाबिल नहीं फिर तू इसे थैली में लिए-लिए क्यों फिर रहा है?' ऐ अल्लाह के रसूल ये खजूरें तो रास्ते में गिरी पड़ी थी। मैंने ये सोचकर उठाकर भेला कर ली कि जब भुख से मेरा आखरी वक्त करीब आ जायेगा तो मैं इन सुखी खजूरों को पानी में डालकर अल्लाह की कसम आंखें बंद करके खा लूँगा और मेरी बूढ़ी माँ को भी खिला दूँगा। अपने जाँ-निसार सहाबी का दुखड़ा सुनकर अल्लाह के रसूल को रहम आ गया। उन्होंने नीचे गिरी खजूरों को अपने मुबारक़ हाथों में लिया।
अबु हुरैरा से कहा हुरैरा अपनी थैली का मुँह खोलों। हुरैरा ने थैली का मुंह खोल दिया। अल्लाह के रसूल ने खजूरों कों हाथो में लेकर दुआ की और कहा कि हुरैरा इस थैली को कभी पलटना नहीं। खजूरों को कभी गिनना भी नहीं। जब भी तुझे और तेरी मां को भूख लगे खजूर निकालते जाना और खाते जाना लेकिन कभी गिनना नहीं। खुद भी खाना और चाहे जिसे भी दे देना ये खजूरें कभी खत्म नहीं होगीं। अबु हुरैरा फ़रमाते है जैसा नबी ने कहा मैंने ठीक वैसा ही किया। ना कभी खजूरें गिनी ना थैली को उल्टा । हुजूर ने इन 21 खजूरें में ऐसी बरकतें डाल दी कि इन खजूरों को मैं भी खाता रहता मेरी वालिदा भी पेटभर खाती और कसम अल्लाह की मदीने में कोई गरीब घर ऐसा ना होगा जहां मेरी खजूरें ना पहुंची हो। अबु हुरैरा कहते है कि जब मैं दरूद शरीफ़ पढ़कर थैली से खजूरों को निकालता तो हर खजूर में से मुश्क की खुश्बू आने लगती। सुभान अल्लाह अबु हुरैरा खुद भी खाते और को भी खिलाते। मिस्कीनों को , यतीमों को , लाचारों को , बच्चों को बूढ़ों को , बेवाओं को , मजबूरों को यहाँ तक कि ये बरकती खजूर की थैली हजरत अबु हुरैरा के पास करीब 30 साल तक रही। इन 30 बरसों में बहुत-कुछ बदल गया था लेकिन थैली से खजूरों की आमद जारी थी। खजूरों में अल्लाह के रसूल की बरकतों का फ़ैज़ जारी था। इन 30 साल में प्यारे आका ने भी पर्दा फरमा लिया। हजरत अबु बकर का दौर भी चला गया हजरत उमर फारुख भी नहीं रहे यहाँ तक की हजरत उस्मान रजि0 की ख़िलाफ़त के आखरी दिन जब सुबह उनका कत्ल किया गया उसी शाम को ये बरकती थैली भी ना जाने कहाँ गुम हो गई। उस दिन अबु हुरैरा को 2 सदमे हुए। पहला इस्लाम के अज़ीम ख़लीफ़ा उस्मान गनी की दर्दनाक शहादत और दूसरी बरकती खजूर की थैली का गुम हो जाना। 17 जून 656 ईस्वी जुमा की शाम ये बरकती थैली अल्लाह जाने कहाँ खो गई। 😢 अबु हुरैरा ने इस थैली के गम हो जाने पर एक शेर पढ़ा जो बुखारी शरीफ में है 👇 "आज सुबह अमीरुल मोमिनीन शहीद हो गए पूरे मदीने पर एक गम का बादल है लेकिन अबु हुरैरा को पूछो मेरे उपर 2 गम के बादल है। उस्मान भी शहीद और मेरे नबी की दी हुई मुबारक़ खजूरों की थैली भी गुम हो गई।😢 दोस्तों ऐसा मामला था हमारे प्यारे नबी की सख़ावत और रहमदिली का । ये भी उनका एक मौज्जा है जो उन्होंने 21 खजूरों में दुआ करके दिखाया। 21 खजूरें 30 साल तक चलती रही जब तक वो थैली दुनिया की नजरों से ओझल ना हुई। 9340949476🤳 #javedshahkhajrana

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बिटको दंत मंजन की भूली बिसरी यादें

नागदा नाम कैसे पड़ा?

पार्श्वगायक महेंद्र कपूर इंदौर में