बुगड़े पीर धार वालों की दरगाह की कहानी
बुगले/बड़े पीर उर्फ हजरत ताजुद्दीन अताउल्ला रह0 की रूहानी मजार और इस्लामपुरा टेकरी की फजीलत
✍️ जावेद शाह खजराना (लेखक)
आपको बुगले पीर क्यों कहा जाता है?
इस मजार और धार टेकरी की क्या फजीलत है?
इंदौर के पास आबाद धार शहर एक जमाने में मालवा की राजधानी हुआ करता था। राजा भोज के जमाने में जब 40 बेकसूर सहाबियों को शहीद करके एक कुंए में फेंका गया तब धार की धरती पर इस्लाम फैलाने की जिम्मेदारी शाह और बादशाहों को दी गई।
नतीजन दूर~दराज़ से वली अल्लाह धार शहर में आकर इस्लाम फैलाने लगे। धार के गवर्नर और मालवा के सुल्तानो ने वलियों की खूब मदद की। धार और मांडव वलियों का गढ़ बन गया । धार/मांडव में पीर~फकीरों की तादात इतनी ज्यादा हो गई कि धार का नाम ही "पीराने धार" पड़ गया।
धार आने वाले बुजुर्गों में चिश्ती और सोहरवर्दी सिलसिले के बुजुर्ग भी शामिल है। ऐसे ही सोहरवर्दी बुजुर्ग है हजरत बुगले पीर या बुगड़े पीर जिनका असली नाम रशीद शेख ताजुद्दीन अताउल्लाह है।
(गुलजारे अबरार पेज 379)।
हजरत बुगले पीर उर्फ ताजुद्दीन अताउल्लाह सरकार की दरगाह धार के बस स्टेंड के ठीक पीछे पूरब की तरफ बसी गुलमोहर कॉलोनी से लगी एक टेकरी पर है।
हजरत ताजुद्दीन अताउल्लाह एक दानिशमंद , पाकीजा अखलाक , जोद तकवा , आला किरदार और साहब~ए~उलूम बुजुर्ग थे। आप अपने जमाने में आलिमों अरबाबे असादत का मरकज थे।
आपकी मजार पर मुगलकालीन खूबसूरत मकबरा बना हुआ है । जिसके चारों तरफ बेहद हसीन 8 आलीशान झरोखे बने है। इन झरोखों से पीराने धार का बेहद हसीन मंजर नजर आता है। मकबरा अष्टकोणीय और एक ऊंचे चबुतरे पर कायम है। मकबरे के अंदर 2 मजारें हैं। दोनों मजारे सटकर बनी हुई है। मगरिबी मजार साईज में थोड़ी ऊंची है । जो बुगड़े पीर के दादा हुजूर हजरत काज़ी सआदुल्लाह सरकार की है । हजरत सआदुल्लाह को ही बड़े पीर कहा जाता है , इन्हीं की वजह से ये मुकाम बड़े पीर मकबूल हुआ।
मकबरे से लगा इमली का एक कदीम दरख़्त है जिस पर एक जमाने में ढ़ेरों बगुले आकर बैठा करते थे। इन्हीं बुगलों की वजह से लोग इन्हें बुगले पीर पुकारने लगे जो बाद में बिगडकर बुगड़े पीर हो गया। लेकिन हकीकत में ये मुकाम बड़े पीर (सआदुल्लाह बड़े पीर) से मशहूर था।
इस मुकाम को बड़े पीर इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये टेकरी बहुत से फाजिल और आलिम बुजुर्गों की खानगाह हुआ करती थी। हजरत काजी सआदुल्ला धार और मांडव के सबसे फाज़िल और आलिम बुजुर्ग थे।
हजरत बुगले पीर उर्फ ताजुद्दीन अताउल्लाह सरकार ही नहीं बल्कि इनके बाप (हजरत मआरुफ) , दादा (हजरत सआदुल्लाह) , परदादा (काज़ी मेहमूद) सभी मशहूर वली अल्लाह थे और इसी टेकरी पर उनकी खानगाह , मदारिस और मकानात हुआ करते थे।
बुगड़े पीर के दादा हुजूर हजरत काजी मेहमूद अमझेरा के काजी थे। जिन्हें मांडव के सुलतान मेहमूद शाह खिलजी ने 500 बीघा जमीन मौजा गांव मारोल बराह मांगोद बोधवाडा में जागिरी में दी। हजरत काजी मेहमूद नारनोली वाले शेख निजाम सरकार के खलीफा और शेख सुहाबुद्दीन सुहरवर्दी की औलाद से थे। आपका सिलसिला अबुबकर सिद्दीकी से मिलता है।
(गुलजार अबरार)
आपके बुजुर्ग इराक से आकर जौनपुर में बस गए थे। नवी हिजरी सदी में काज़ी मेहमूद मांडव चले आए। कुछ दिनों धार में कयाम किया। जहां हजरत सआअदुल्ला की पैदाईश हुई । अमझेरा में मेहमूद काजी की मजार है।
धार के इस्लामपुरा की इस टेकरी पर हजरत बुगड़े पीर उर्फ ताजुद्दीन अताउल्लाह और इनके दादा हुजूर की मजारें हैं। मकबरे के बाहर थोड़ी पीछे उत्तर दिशा में खुले ओटले पर जिंदा हाजी मज्जूब रहमतुल्लाह अलैह भी जलवा अफ़रोज़ है। हाजी मज्जूब बुगड़े पीर उर्फ ताजुद्दीन अताउल्लाह के वालिद मआरूफ सरकार के मुरीद और बीजा नगर के राजा के बेटे थे। जो बाद में पीर कहलाए।
इस टेकरी से 6 नामी~गिरामी वलियों का ताल्लुक है। जिनमें से 3 यहां मदफून है । सभी 6 वलियों क्रमश हजरत काजी मेहमूद , हजरत सआदुल्लाह , हजरत मआरुफ, बुगड़े पीर उर्फ हजरत ताजुद्दीन , जिंदा हाजी मज्जूब और सद्रजहां उर्फ शरबती बाबा यहां मुकीम थे। इन सभी का जिक्र गुलजार अबरार में मौजूद है।
ऐसी रूहानी और आला मुकाम वाली टेकरी है ये । लेकिन आजकल बदहाली का शिकार है। आवारा बकरियां मजारों के फूल तक चटकर जाती है। नशाखोर भी यहां डेरा जमाएं बैठे रहते हैं।
हजरत ताजुद्दीन उर्फ बुगड़े पीर की पैदाईश अपने बाप दादाओं की तरह धार में इसी टेकरी पर हुई । हिजरी सन 986 (1565 ईस्वी) में आप धार में पैदा हुए। जब आप 12 बरस के थे तब आपके वालिद हजरत मारूफ का इंतकाल मदीना में 998 हिजरी (1577 ईस्वी) में हो गया।
बुगले पीर उर्फ ताजुद्दीन अताउल्लाह ने आज से 366 साल पहले सन 1654 ईस्वी में 90 साल की उम्र में दुनिया फानी से रुखसती ली। आपकी मजार पर मांडव के मुगल गवर्नर ने मकबरा तामीर करवाया। (बुजुरगाने~दीन~ए मालवा पेज 46)
हजरत ताजुद्दीन अताउल्ला उर्फ बुगड़े पीर के वंशज आजकल इंदौर के आजाद नगर में मकबरा चौक पर अल~फलाह नामी मदरसा चलाते है और इन्ही के बुजुर्ग मौलाना मोइनुल्लाह नदवी लखनवी साहब कुछ बरसों पहले तक हयात थे और नामी शख्सियत थे।
मैं जब भी धार जाता हूं।
कदीम और गुमनाम मजारों की खोज और जियारत करना नहीं भूलता। फिर उन्हें ढूंढकर उनकी मालूमात हासिल करके आप दोस्तों की खिदमत में पेश कर देता हूं। जब भी आप धार जाए इन मजारातो की जियारत जरूर करें । क्योंकि इन्हीं बुजुर्गों की नेक कोशिशों और मेहनत से आज सूबा~ए~मालवा ईमान वालों से रोशन है।
मुझ हकीर से लिखने में अगर कोई गलती हो गई हो तो माफ करना और मेरे हक में दुआ करना।
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